1.5 लाख से 50 करोड़ तक का सफ़र, जैविक खेती के ज़रिए किसानों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं राजस्थान के योगेश

आकांक्षी उद्यमियों के लिए योगेश का सफलता-मंत्र यह है कि “किसी भी पेशे में एक हजार दिन की कड़ी मेहनत निश्चित रूप से आपको दीर्घकालिक सफलता दिलाएगी। सिर्फ इसलिए कि किसी को तुरंत सफलता नहीं मिलती इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें एक पेशे से दूसरे पेशे में कूदते रहना चाहिए।  योगेश की कहानी वाक़ई में प्रेरणा से भरी है ख़ासकर उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो खेती-किसानी को कमतर आँकते हैं। उन्होंने अपनी सफलता से यह साबित कर दिखाया है कि यदि दृढ़-इच्छाशक्ति और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।

भारत में किसानों की दुर्दशा से हम सब परिचित हैं। बदलते वक्त के साथ खेती-किसानी के क्षेत्रों में भी आधुनिक तकनीक एवं पद्धति की आवश्यकता है। लेकिन, ज्यादातर किसानों के बीच जागरूकता की कमी ही उनकी दुर्दशा का मूल कारण है। ऐसे में हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने आस-पास के किसानों को जागरूक करें। अपनी इसी जिम्मेदारी को बखूबी समझते हुए राजस्थान के योगेश जोशी ने किसानों को मदद करने का बीड़ा उठाया। आज वह अपने 50 करोड़ रुपये के जैविक खेती व्यवसाय के ज़रिये हजारों किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में कार्यरत हैं।

कृषि विज्ञान में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, उन्होंने जैविक खेती में डिप्लोमा के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। साल 2006 में 8000 रुपए की मासिक नौकरी के साथ उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। हालांकि, 4 साल तक काम करने के बावजूद, उनका वेतन केवल 12,000 रुपये मासिक ही हो पाया, इससे योगेश निराश हो गए और 2010 में उन्होंने नौकरी छोड़ जैविक खेती का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। मिडीया के साथ विशेष बातचीत में योगेश ने बताया कि जैैैविक खेेती में कदम रखने के पीछे लोगों को मधुमेह, कैंसर जैसी बीमारियों से सुरक्षित करना भी एक विशेष वज़ह रही। पश्चिमी देशों में लोग पहले ही जैविक फल-सब्जियों का सेवन करना शुरू कर दिए हैं। भारत में इसका प्रचलन हाल ही में शुरू हुआ है। हालांकि, कोरोना महामारी के बाद लोग जैविक भोजन पर ज्यादा जोर दे रहे हैं।

योगेश का एकमात्र उद्देश्य किसानों को जैविक खाद्य उगाने में मदद करना था। इस योजना के तहत वह किसानों को उच्च दाम देकर जैविक फल-सब्जियों को खरीदते और फिर उन्हें बड़ी कंपनियों को बेचते जो प्रीमियम कीमतों पर जैविक खाद्य खरीदना चाहती हैं। इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने सात किसानों के साथ मिलकर जीरे की जैविक खेती शुरू की। हालाँकि, अपने व्यावहारिक अनुभव की कमी के कारण, योगेश ने खेतों में मिट्टी को पूरी तरह से रसायनों से मुक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया और इससे पहली फसल बेकार हो गई।

आकांक्षी उद्यमियों के लिए योगेश का सफलता-मंत्र यह है कि “किसी भी पेशे में एक हजार दिन की कड़ी मेहनत निश्चित रूप से आपको दीर्घकालिक सफलता दिलाएगी। सिर्फ इसलिए कि किसी को तुरंत सफलता नहीं मिलती इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें एक पेशे से दूसरे पेशे में कूदते रहना चाहिए।  योगेश की कहानी वाक़ई में प्रेरणा से भरी है ख़ासकर उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो खेती-किसानी को कमतर आँकते हैं। उन्होंने अपनी सफलता से यह साबित कर दिखाया है कि यदि दृढ़-इच्छाशक्ति और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।

लेकिन योगेश अपने इरादे पर अडिग रहे। उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा और जैविक उत्पाद उगाने के सही तरीकों का पता लगाया। और तीन साल बाद, उनके धैर्य और दृढ़ संकल्प ने आखिरकार उन्हें सफलता का स्वाद चखा दिया। उनके पास इस प्रोजेक्ट में निवेश करने के लिए ज्यादा पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपने दोस्तों की मदद माँगी और 1.5 लाख रुपये का निवेश जुटाने में कामयाब रहे।

जल्द ही योगेश का भारत और विदेशों में किसानों को जैविक उत्पाद उगाने और प्रीमियम कीमतों पर अपनी फसल बेचने में मदद करने के परोपकारी विचार ने समाचार प्लेटफार्मों पर सुर्खियां बटोरीं। और जैसे ही लोगों ने महसूस किया कि योगेश महान काम कर रहे हैं, किसान स्वयं उनके पास आने लगे। योगेश बताते हैं कि “शुरू में मेरे पिता निराश थे कि मैंने व्यवसाय करने के लिए एक स्थिर जीवन छोड़ दिया था, लेकिन एक बार जब ऑर्डर आने लगे तो उन्होंने भी मेरे काम में रुचि लेना शुरू कर दिया और मुझे काम को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए ऋण प्राप्त करने में भी मदद की।”

10 साल पहले शुरू हुई एक साधारण शुरुआत आज एक बड़े संगठन का रूप ले चुकी है। योगेश की कंपनी, रैपिड ऑर्गेनिक अब लगभग 3,000 किसानों को बीज, प्रौद्योगिकी, जैविक उर्वरक और संपूर्ण सहायता प्रदान करती है, जिससे उन्हें जैविक उत्पाद उगाने में मदद मिलती है। यहां तक कि उन लोगों को ऋण भी मिलता है जिनके पास वित्तीय समस्याएं हैं और फिर कंपनी उनसे उचित मूल्य पर फसल भी खरीदती है। इतना ही नहीं, उन्होंने 10,000 किसानों को जैविक खेती प्रमाणपत्र प्राप्त करने में भी मदद की है। वर्तमान में कंपनी किसानों से 2-3 हजार टन जैविक फसल खरीदती है और उन्हें भारत और विदेशों में बेचती है, जिसमें जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और अन्य देश शामिल हैं।

आकांक्षी उद्यमियों के लिए योगेश का सफलता-मंत्र यह है कि “किसी भी पेशे में एक हजार दिन की कड़ी मेहनत निश्चित रूप से आपको दीर्घकालिक सफलता दिलाएगी। सिर्फ इसलिए कि किसी को तुरंत सफलता नहीं मिलती इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें एक पेशे से दूसरे पेशे में कूदते रहना चाहिए।  योगेश की कहानी वाक़ई में प्रेरणा से भरी है ख़ासकर उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो खेती-किसानी को कमतर आँकते हैं। उन्होंने अपनी सफलता से यह साबित कर दिखाया है कि यदि दृढ़-इच्छाशक्ति और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।

1.5 लाख रुपये के निवेश से शुरू हुई योगेश की कंपनी अब 50 से अधिक कर्मचारियों की मदद से 50 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार कर रही है। इसके अलावा, उनकी पत्नी अरुणा जोशी भी उनके साथ एक निदेशक के रूप में काम करती हैं और यहां तक कि महिला किसानों के साथ काम करने की उनकी पहल के लिए कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी से महिला उद्यमिता के लिए पुरस्कार भी प्राप्त किया है। योगेश सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा कई बार पुरस्कृत किये जा चुके हैं। वह अब हर राज्य में जैविक सुपरफूड का उत्पादन शुरू करना चाहते हैं क्योंकि प्रत्येक राज्य की अपनी अनूठी फसल होती है और वह इस उत्पाद को दुनिया भर में बेचने की चाहत रखते हैं।

आकांक्षी उद्यमियों के लिए योगेश का सफलता-मंत्र यह है कि “किसी भी पेशे में एक हजार दिन की कड़ी मेहनत निश्चित रूप से आपको दीर्घकालिक सफलता दिलाएगी। सिर्फ इसलिए कि किसी को तुरंत सफलता नहीं मिलती इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें एक पेशे से दूसरे पेशे में कूदते रहना चाहिए। योगेश की कहानी वाक़ई में प्रेरणा से भरी है ख़ासकर उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो खेती-किसानी को कमतर आँकते हैं। उन्होंने अपनी सफलता से यह साबित कर दिखाया है कि यदि दृढ़-इच्छाशक्ति और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।

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