बिना कोई टहनी काटे, 40 फ़ीट ऊँचे आम के पेड़ पर बनाया घर, ऐसा है प्रकृति से प्यार


उनके घर को देखने के बाद बहुत से लोगों ने उनसे घर का डिज़ाइन माँगा। इसके बारे में केपी सिंह कहते हैं, “लोगों ने कहा कि आप हमारे लिए भी डिज़ाइन कर दीजिए। लेकिन कोई भी अपनी सुविधाओं के साथ समझौता करने को तैयार नहीं होता है और वहीं दूसरी

उदयपुर को झीलों का शहर कहा जाता है। पहाड़ियों से घिरा हुआ यह शहर बेहद खूबसूरत है। पुराने समय के किलों और महलों के अलावा भी इस शहर में कुछ है, जो इसकी खूबसूरती और शान को बढ़ाता है और वह है लगभग 20 साल पुराना एक ‘ट्रीहाउस’। ‘ट्रीहाउस’ मतलब पेड़ पर बना घर। दुनिया में वैसे तो बहुत से लोगों ने ट्रीहाउस बनवाए हैं। लेकिन इस ट्रीहाउस की खासियत यह है कि यह तीन मंजिला घर है, जिसमें बेडरूम, किचन, वॉशरूम और एक लाइब्रेरी भी है। यह घर, आम के पेड़ पर बना हुआ है और इस घर को बनाने वाले शख्स का नाम है कुल प्रदीप सिंह (केपी सिंह)। अजमेर में पले-बढे केपी सिंह पिछले कई बरसों से उदयपुर में ही रह रहे हैं। साल 2000 में उन्होंने यह ‘ट्रीहाउस’ बनाया था और इसे बनाने के पीछे उनका मकसद था कि पेड़ कटने से बचाया जाए और लोगों के सामने एक मॉडल पेश किया जाए। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने इस पूरे सफर के बारे में विस्तार से बताया।

आम के पेड़ पर बनाया घर

उनके घर को देखने के बाद बहुत से लोगों ने उनसे घर का डिज़ाइन माँगा। इसके बारे में केपी सिंह कहते हैं, “लोगों ने कहा कि आप हमारे लिए भी डिज़ाइन कर दीजिए। लेकिन कोई भी अपनी सुविधाओं के साथ समझौता करने को तैयार नहीं होता है और वहीं दूसरी

केपी सिंह कहते हैं, “मैंने IIT कानपुर से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और उसके बाद राजस्थान में ही काम करने लगा। लगभग सात-आठ साल तक बिजली विभाग में काम करने के बाद, मैंने अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। इसके बाद, मैंने अपनी खुद की कंपनी शुरू की, जो आज इलेक्ट्रिसिटी के क्षेत्र में ही काम कर रही है।”

उन्होंने कहा कि 1999 के आसपास, वह घर बनाने के लिए उदयपुर में जमीन की तलाश कर रहे थे।

केपी सिंह ने बताया, “इस इलाके को पहले ‘कुंजरो की बाड़ी’ कहा जाता था। यहां रहनेवाले लोग, फलों के पेड़ लगाते थे और फल बेचकर अपना गुजारा करते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा और शहर की आबादी बढ़ने लगी, तो यहां लगे लगभग 4000 पेड़ों को काटकर प्लॉट तैयार किया जाने लगा। जब मेरी मुलाक़ात एक प्रॉपर्टी डीलर से हुई, तो मैंने उन्हें पेड़ों को काटने की बजाय उसे उखाड़कर अन्य खाली जगह पर लगाने का सुझाव दिया। लेकिन उन्होंने कहा कि इसमें बहुत खर्च आएगा। इसके बाद मैंने उन्हें कहा कि अगर पेड़ों को कहीं और नहीं लगा सकते, तो आप पेड़ों पर ही घर बना दीजिए।” प्रॉपर्टी डीलर ने केपी सिंह की बात को अनसुना कर दिया। लेकिन केपी सिंह ने ठान लिया कि वह अब पेड़ पर ही घर बनाएंगे। इसलिए, उन्होंने उसी जगह पर एक प्लॉट खरीदकर उसमें लगे आम के पेड़ पर घर बनाने का फैसला किया।

ईंट, सीमेंट नहीं सेल्यूलोज शीट और फाइबर से बना है घर

उनके घर को देखने के बाद बहुत से लोगों ने उनसे घर का डिज़ाइन माँगा। इसके बारे में केपी सिंह कहते हैं, “लोगों ने कहा कि आप हमारे लिए भी डिज़ाइन कर दीजिए। लेकिन कोई भी अपनी सुविधाओं के साथ समझौता करने को तैयार नहीं होता है और वहीं दूसरी

केपी सिंह ने घर बनाने की शुरुआत साल 1999 में की थी और 2000 में यह बनकर तैयार हुआ। उन्होंने कहा, “जब मैंने घर बनाना शुरू किया, तब आम के पेड़ की लंबाई लगभग 20 फ़ीट थी। इसलिए उस समय मैंने सिर्फ दो मंजिला घर ही बनाया। अपने सपनों के इस घर को बनाने के लिए मैंने इस पेड़ की एक टहनी तक नहीं काटी है। मेरा घर जमीन से लगभग नौ फीट ऊंचाई पर है और पेड़ के तने के सहारे टिका हुआ है। आज इस पेड़ की लम्बाई 40 फ़ीट से भी ज्यादा है।” केपी सिंह ने सबसे पहले पेड़ के चारों तरफ चार खम्बे बनाए। इन खम्बों में एक खम्बा ‘विद्युत् परिचालक’ का  काम करता है, ताकि अगर कभी बारिश में बिजली कड़के तो वह इस पेड़ पर न गिरे।

इसके बाद, उन्होंने स्टील से पूरा ढांचा बनाया और सेल्यूलॉज शीट और फाइबर से घर की दीवारें और फर्श बनाया गया। यह घर नौ फ़ीट की ऊंचाई से शुरू होता है और इसमें जाने के लिए केपी सिंह ने रिमोट से चलने वाली सीढ़ियां लगायी है। इन सीढ़ियों को घर में आते-जाते समय रिमोट से खोला जा सकता है। वह कहते हैं, “कुछ सालों तक यह घर दो मंजिल था। जिसे बाद में मैंने तीन मंजिल का बना दिया। पेड़ पर घर होने की वजह से कई बार पशु-पक्षी भी कमरे में आ जाते हैं। लेकिन अब उनके साथ रहने की भी आदत हो गई है। क्योंकि उन्होंने हमारी जगह नहीं, बल्कि हमने उनकी जगह पर अपना घर बनाया है।” केपी सिंह कहते हैं कि उन्होंने इस पेड़ में कोई बदलाव नहीं किया है। बल्कि अपने घर को पेड़ के आकार के हिसाब से बनाने की कोशिश की है। 

जब आप उनके घर में प्रवेश करेंगे, तो आपको कमरों में पेड़ की टहनियां नजर आएंगी। पहले फ्लोर पर उन्होंने किचन, बाथरूम, और डाइनिंग हॉल बनाया है। वहीं, दूसरे फ्लोर पर उन्होंने वॉशरूम, लाइब्रेरी और एक कमरा बनाया है। तीसरे फ्लोर पर एक कमरा बनाया गया है, जिसकी छत ऊपर से खुल सकती है। उन्होंने कहा कि अक्सर लोग घर को सुंदर और व्यवस्थित बनाने के लिए टहनियों को काट देते हैं। लेकिन इस घर में एक भी टहनी को नहीं काटा गया है। बल्कि कई टहनियों को घर के फर्नीचर की तरह इस्तेमाल में लिया जा रहा है। जैसे किसी टहनी को सोफा का रूप दिया गया है, तो किसी को टीवी स्टैंड का। खास बात यह भी है कि पेड़ को बढ़ने के लिए जगह-जगह बड़े छेद छोड़े गए हैं। ताकि पेड़ की शाखाओं को भी सूर्य की रोशनी मिल सके और वे अपने प्राकृतिक रूप से बढ़ सकें।

उनके घर को देखने के बाद बहुत से लोगों ने उनसे घर का डिज़ाइन माँगा। इसके बारे में केपी सिंह कहते हैं, “लोगों ने कहा कि आप हमारे लिए भी डिज़ाइन कर दीजिए। लेकिन कोई भी अपनी सुविधाओं के साथ समझौता करने को तैयार नहीं होता है और वहीं दूसरी

वह कहते हैं, ” हम इस घर में लगभग आठ साल लगातार रहे हैं, लेकिन जब मेरी माँ की तबियत खराब रहने लगी तो हमने इसी घर की बगल में एक और घर बना लिया ताकि माँ को परेशानी न हो। हम सभी इन दोनों घरों का आनंद ले रहे हैं। गर्मी के मौसम में इस पेड़ पर खूब आम भी आते हैं।” केपी सिंह के इस अनोखे ‘ट्रीहाउस’ को लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी शामिल किया गया है। वह कहते हैं, “अभी भी कई लोग मेरे घर को देखने आते हैं और इसे देखकर अचंभित हो जाते हैं कि आखिर किस तरह पेड़ पर घर बना दिया गया। मेरा मानना है कि अगर आपके दिल में जूनून है, तो आप कुछ भी कर सकते हैं।” उनके घर को देखने के बाद बहुत से लोगों ने उनसे घर का डिज़ाइन माँगा। इसके बारे में केपी सिंह कहते हैं, “लोगों ने कहा कि आप हमारे लिए भी डिज़ाइन कर दीजिए। लेकिन कोई भी अपनी सुविधाओं के साथ समझौता करने को तैयार नहीं होता है और वहीं दूसरी ओर, मैं पेड़ के साथ समझौता नहीं करता हूँ। क्योंकि मुझे लगता है कि पेड़ के एक पत्ते को भी हमारी वजह से नुकसान न हो।”

यकीनन, केपी सिंह का यह घर अपने आप में एक अजूबा है। इसलिए अगली बार कभी उदयपुर जाना हो तो इस घर को जरूर देखिएगा।

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