उत्तर प्रदेश के सतना जिले के एक छोटे से गांव में बेटी पैदा हुई. वैसे तो बेटियों के जन्म लेने पर गांव में खुशियां नहीं मनाई जाती है.लेकिन इस गांव में एक ऐसे भी दंपति से जिन्होंने अपनी बेटी के जन्म पर ढोल नगाड़े बजाएं. इसलिए उसके माता-पिता ने उनका नाम सुरभि रखा. सुरभि के माता-पिता शिक्षा का महत्व समझते थे. इसलिए जब सुरभि बढ़ी हुई तब उसका एडमिशन गांव के सरकारी स्कूल में करा दिया गया.
वहां सुरभि ने हिंदी मीडियम से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी. हिंदी मीडियम से पढ़ने वाली सुरभि हमेशा परीक्षाओं में टॉप करने लगी. सुरभि ने दसवीं की परीक्षा में मैथ और फिजिक्स में 100 मे 100 अंक हासिल किया था. उस समय उसके शिक्षिका ने कहा था कि तुम बहुत अच्छा करोगी. सुरभि ने शिक्षिका की बात को अपने दिमाग में बिठा लिया और लगातार पढ़ाई करने लगी.
लगातार पढ़ाई करने की बीच सुरभि के जोड़ों में दर्द होने लगा. उसने पहले इस दर्द को नजरअंदाज कर दिया लेकिन धीरे-धीरे यह दर्द पूरे शरीर में फ़ैल गया. सुरभि के माता-पिता उसे दिखाने के लिए जबलपुर लेकर गए.वहां विशेषज्ञ डॉक्टर ने कहा, सुरभि को ‘रूमैटिक फीवर’ है. यह बीमारी हृदय को नुकसान पहुंचाती है और कुछ मामलों में मृत्यु भी हो जाती है. सुरभि को अब इंजेक्शन लगवाने के लिए हर हप्ते जबलपुर जाना पड़ता था. इन सब के बीच वह अपना पढ़ाई जारी रखी.
लगातार आने वाली मुश्किलों के आगे सुरभि ने हार नहीं माना और कोशिश करती रही. सुरभि की कोशिश एक दिन रंग लाई वह 2016 में ऑल इंडिया में 50 वी रैंक हासिल की । यूपीएससी में 50वी रैंक हासिल कर आईएएस अफसर बन गई।