जानिए भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन चलाने वाले आर जी गोपीनाथ की प्रेरक कहानी

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हम लोग बहुत बार अपने जीवन में कई ऐसे लोगो की कहानियां सुनते और देखते है। जिन्होंने बहुत संघर्ष करके अपनी पूरी जिंदगी बदल डाली। हमने अपने जीवन में बहुत से लोगो को नीचे से उठते हुए ऊपर देखा है। आज कल हम सोशल मीडिया पर भी ऐसे बहुत से उदाहरण देखते है। जो लोग रेडी लगा रहे होते है। वह तरक्की करके होटल खोल चुके होते है। किसी का कुछ नही पता कब, कौन, कहा से उठके कहा पहुंच जाए। परंतु यह सब किसी को भी थाली में परोसके नही दिया जाता है। इसके लिए हर किसी को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। तभी उनकी मेहनत एक दिन रंग लाती है। किसी के लिए भी तरक्की देखना एक दिन का काम नही होता है। तरक्की देखने के लिए लोगो को कई साल मेहनत करनी पड़ती है। कठिन परिश्रम करना पड़ता है। और तो और ऐसे समय में बहुत से लोग मजाक भी उड़ाते है। साथ ही साथ इंसान का मनोबल भी गिराते है। इन सब चीजों को भी सहते हुए इंसान आगे बढ़ता चला जाता है और कठिन परिश्रम करता है। तब कही जाकर वह ऊंचाइयों को छूता है। आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही इंसान की जिन्होंने खुद किसी समय में बेलगड़ी चलाई है। और अब वह एक एयर लाइन खरीद चुके है।

कौन है वह शख्स…..

आज हम जिनके बारे में बात करने जा रहे हैं, उनका नाम है कैप्टन गोपीनाथ। जिनका जन्म कर्नाटका के एक छोटे से गांव में हुआ था। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। और इनके 8 भाई बहन भी थे। जिसके कारण सभी को उनके माता पिता अच्छी तरह नही पढ़ा पाए। परंतु वह बहुत मेहनती थे। गोपीनाथ भी थोड़े बड़े होने के बाद अपने पिता के साथ उनका हाथ बटाने लगे। वह बचपन से ही बैलगाड़ी चलाया करते थें। परंतु वह अपनी सारी जिंदगी इन्ही सब में नही काटना चाहते थे। वह कहते थे कि वह अपने पैरो पर अच्छे से खड़े हो सके। और अपने माता पिता का नाम रोशन कर उन्हे अच्छे दिन दिखाए। जिसके लिए उन्हे कई साल कड़ी मेहनत करनी पड़ी साल 1962 में उन्होंने अपना स्कूल बदल लिया। जहा पर उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने की कोशिश की ओर वह सफल भी हुए। उन्होंने भारतीय सेना में 8 साल गुजारे हैं और सच्चे मन से देश की सेवा की हैं। लेकिन कुछ समय बाद कुछ कारण वश उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और अपने कई तरह के कारोबार शुरू किए। जैसे की पोल्ट्री फार्मिंग, स्टोकब्रोकर आदि। परंतु किसी में सफलता नहीं मिली।

गोपीनाथ ने इसके बारे में बताते हुए कहा कि 2000 में वह अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया गए थें। जहा पर उन्होंने अपना समय बिताते हुए कई सारे हवाई जहाज़ एक के बाद एक उनके ऊपर से जाते हुए देखे तो वह हैरान हो गए। क्योंकि उस समय भारत में हवाईजहाज का इतना प्रचलन नही था। जहा ऑस्ट्रेलिया में 40000 हवाईजहाज रोज उड़ान भरते थे। वही भारत में केवल 420 हवाईजहाज उड़ान भरते थे। यही से उन्होंने अपना दिमाग दौड़ाया और सोचा कि भारत में सभी लोग ट्रेन और बस से सफर करते है। अगर हवाईजहाज का बिजनेस किया जाए तो लोग उसकी यात्रा करना अधिक पसंद करेंगे और कारोबार बहुत अच्छा चलेगा। यह सब जितना आपको सुनने में अच्छा लग रहा हैं। गोपीनाथ के लिए करने में उतना ही मुश्किल था।

कैसे की शुरुवात……

गोपीनाथ हवाई जहाज का कारोबार करने की ठान बैठे थे। और वह यह चाहते थे कि उनकी एयरलाइन में सभी ग्राहकों को कम दाम में यात्रा करने को मिले। ताकि आम आदमी भी इसका आनंद उठा सके। परंतु इन सबके लिए भात सारे पैसों की आवश्यकता थी। जो गोपीनाथ के लिए मुश्किल था। उनके भाई बंधुओं ने उनकी बहुत हद्द तक मदद की।और साल 2003 में उन्होंने अपने पहले 48 सीट वाले साथ दो इंजन वाले हवाई जहाज की स्थापना की। जिसमे लोगो को कम दाम पर यात्रा करने की भी सुविधाएं गोपीनाथ ने उपलब्ध कराई। क्योंकि वह यह सोचते थे कि आम आदमी भी इस एयरलाइन द्वारा हवाईजहाज की यात्रा आसानी से कर पाएं। जो कि गोपीनाथ करने में सफल भी रहे।

पहुंचे तरक्की की राह पर…….

गोपीनाथ ने भारत में एयरलाइन की शुरुवात करली थी।और उनकी एयरलाइन के पहले हवाईजहाज ने शहर हुबली से बेंगलुरु तक की उड़ान भरी थीं। उस समय भारत में लगभग 2000 के आस पास लोग हवाईजहाज में सफर करते थें और कुछ समय बाद यह लोगो की संख्या बढ़ गई और 2000 से 25000 हो गई। जिसका कारण यही था की गोपीनाथ ने अपनी एयरलाइन में हवाईजहाज की यात्रा के दाम कम किए हुए थे। ताकि आम आदमी भी इसका आनंद उठा सके। साल 2007 में गोपीनाथ की एयरलाइन इतनी तरक्की कर चुकी थी कि कंपनी के पास 45 हवाई जहाज थे। जिनमे हर रोज उनकी कंपनी के 380 हवाइजाहज उड़ान भरते थे। गोपीनाथ में अपनी एयरलाइन में जो सुविधाए लोगो को सबसे कम दाम में उपलब्ध कराई थी। वैसी सुविधाओ और अन्य किसी एयरलाइन में नही थी।

और डेक्कन हुई बंद…..

गोपीनाथ ने अपनी एयरलाइन का नाम एयर डेक्कन रखा था। साल 2007 में जब उनकी कंपनी सबसे आगे थी। तभी और अन्य कंपनियां उनके साथ आकर उन्हे बराबर की टक्कर देने लगी थीं। गोपीनाथ जो सुविधाए अपने ग्राहकों को कम दाम पर उपलब्ध करा रही थी। वही सुविधाए कम दाम पर अब दूसरी कंपनियों द्वारा भी उपलब्ध कराई जा रही थी। जिसके कारण एयर डेक्कन को घाटा होने लगा। और एक समय ऐसा आ गया कि कंपनी को नुकसान होने लगा जिसके कारण गोपीनाथ ने इसे बेचने का फैसला किया और किंगफिशर के मालिक विजय माल्या को बेचदी। कंपनी को विजय माल्या को बेचने के बाद एयर डेक्कन का नाम किंगफिशर रेड रखा गया। गोपीनाथ की उम्मीद थी कि भले ही उनकी एयरलाइन का नाम बदल गया है पर वह चलती जरूर रहेगी। परंतु यह भी संभव न हो पाया और पांच साल बाद ही किंगफिशर रेड बंद हो गई।

ऑटोबायोग्राफी पर बनी किताब………

गोपीनाथ का पूरा जीवन संघर्षों से भरा हुआ हैं। और बहुत लोगो को प्रेरित करने वाला है। जिसके कारण इनकी ऑटोबायोग्राफी पर पूरी किताब लिखी गई है। जिसे लोग पढ़ना बेहद पसंद करते है। और गोपीनाथ की संघर्ष भरी जिंदगी से प्रेरणा भी लेते है। भले ही गोपीनाथ ने बड़े होने के बाद कड़ी मेहनत करके एयरल

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